Vilakshan (विलक्षण): Consider me Almighty, not a Child! (Hindi Edition) Kindle Ebook - Best Sci-fi / Action / Adventure / Drama / Family / Suspense / Thriller / Romance / Human Psychology / Psycho Thriller / Fantasy / Fiction Book Ever on Amazon



यह एक विचारणीय तथ्य है की तिब्बत में आज भी कहीं पर मनुष्य के 'आज्ञाचक्र' या सरल भाषा में कहें तो 'तीसरी आँख' को निद्रा से जगाने की व्यवस्था है! यह एक छोटी सी शल्य चिकित्सा द्वारा संभव है! यह शरीर का वह स्थान है, जो समस्त चक्रों में सर्वश्रेष्ठ है! इसकी जाग्रति ऐसे ही है जैसे 'लड़ीदार पटाखे', एक को आग देने पर सभी में विस्फोट होता है! सभी चक्र इस एक चक्र से जुड़े हैं! मस्तिष्क की पूर्ण १०० प्रतिशत जाग्रति इससे संभव है! परन्तु उस स्थान को ढूढ़ना लगभग असंभव है, जहाँ पर यह कार्य संभव है! इसका तात्पर्य है कि 'अयोग्य' का इसे प्राप्त करना असंभव है, और योग्य के लिए अत्यंत संभव!

यह कैलाश पर्वत की चोटी पर पहुँचने जैसा है! ... पूर्णतया असंभव! ... परन्तु सच्चे शिवभक्त के लिए नितांत संभव! ..... परन्तु कितने सच्चे शिवभक्त बचे हैं आज? यह कहानी उतनी ही संभव और जटिल है, जितने की आप स्वयं!

वृक्ष ही बीज है और बीज ही वृक्ष! अणु ही मनुष्य है और मनुष्य ही अणु! महात्मा भी मनुष्य है और साक्षात ईश्वर बनने का बीज भी महात्मा में है! परन्तु प्रारम्भ होना चाहिए! प्रारम्भ नहीं तो संभावना नहीं! ऊँचाई पर पहुँचने के लिए सीढ़ी पर प्रथम पग अनिवार्य है! प्रथम ही अंतिम है!

जब एक सामान्य से भी निचले स्तर का मनुष्य अचानक से 'असामान्य' हो जाये तो वह अपने आस पास की दुनिया को किस तरह से देखेगा और किस तरह से व्यवहार करेगा ये आप इस पुस्तक को पढ़कर जान लोगे! ये कहानी आपके मष्तिष्क के हर एक हिस्से को हिलाकर रख देगी!


The story 'Vilakshan' is completely Psychological. A well-knower of human-psychology could assimilate this story completely.

The main protagonist 'Manav' and 'Naman' have the most complicated and unusual relationship ever in the story, or in the real world if this story comes true. To completely understand their mindset for each other, you need to be an intelligent one.

It is not just a story, It is a brain-blower pill which you can swallow hard. If you justify the end, you can't justify yourself, but If you can't justify the end, then you can't start. There's no start of anything, there's no end of anything. Only our mind decides the start and the end. Egg or Hen, who came first?

Don't justify the story, just assimilate it. A new door of human-psychology will be opened for you for sure.

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